Suprimcort New Order में दोस्तों सुप्रीम कोर्ट ने जल्दी में कई जजमेंट्स दिए हैं। जो कांटेक्ट बेस या संविदाकर्मी है उनके नियमतीकरण को लेकर अर्थात उनके रेगुलाइजेशन को लेकर Suprimcort New Order ने कई जजमेंट्स दिए हैं।
Suprimcort New Order के बारे में
Suprimcort New Order में जैसे कि जग्गू वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया है। देन आपका श्रीफल वर्सेस नगर निगम गाजियाबाद है। इन जजमेंट्स में जो कंट्रोवर्सी कवर की गई है या फिर हम कहें कि जो कोर्ट ने ऑब्जरवेशन दी है।
Suprimcort New Order में वह इस प्रकार दी है कि यह जो एंप्लाइजज़ थे जो कॉन्ट्रैक्ट बेस पे काम कर रहे थे। वो काफी समय से सरकार के साथ या सरकारी डिपार्टमेंट में काम कर रहे थे। साथ ही उनका काम बारामासी था। प्रीनल नेचर का काम था।
कोर्ट का ऑब्जरवेशन यह है कि जब सरकार में इस तरह का काम पूरे साल रहता है। ऐसे लोगों की पूरे साल जरूरत होती है तो फिर सरकार इन कर्मचारियों को स्थाई क्यों नहीं करती? सुप्रीम कोर्ट का यह मानना है कि इस तरह की जो प्रैक्टिस है वो लेबर एक्सप्लइटेशन और एक तरह का डिस्क्रिमिनेशन है।
डिस्क्रिमिनेशन मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अगर किसी सरकारी डिपार्टमेंट में एक व्यक्ति है जो रेगुलर है। और एक व्यक्ति है जो कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पे है। तो जाहिर सी बात है जो रेगुलर है उसकी सैलरी ज्यादा है। जबकि दोनों व्यक्ति काम सेम कर रहे हैं। तो एक तरह का डिस्क्रिमिनेशन भी है।
तो सर्वोच्च न्यायालय कई बार ये टिप्पणी कर चुका है कि स्टेट को एज ए गुड स्टेट बिहेव करना चाहिए। उसका जो बिहेवियर है। सिटीजंस के प्रति वो बराबर होना चाहिए। जिन जजमेंट्स की मैंने बात की है। जग्गू और श्रीफल वाले इन सबके अंदर सुप्रीम कोर्ट ने पिटिशर्स के फॉर्म में फैसला दिया है। उन सबकी सर्विज रेगुलर की है।
Suprimcort New Order में आर्डर का पास होना
Suprimcort New Order में दोस्तों सुप्रीम कोर्ट ने रिसेंटली एक ऐसा ही ऑर्डर पास किया है रेगुलाइजेशन को लेकर। अगर हम डेट की बात करें, तारीख की बात करें, उसकी तारीख है 19 अगस्त 2025 और ये ऑर्डर दिया गया है। बाय द बेंच ऑफ जस्टिस विक्रमनाथ जी एंड संदीप मेहता जी।
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Suprimcort New Order के लिए इसमें कोर्ट की क्या ऑब्जरवेशंस रही है? और फाइनली इस ऑर्डर में कोर्ट ने क्या डायरेक्शन दिए? स्पेसिफिकली स्टेट को। देखिए, पहले हम बात करें जब भी नियमितकरण की बात आती है तो सरकार टेंपरेरी एंप्लाइजज़ को नियमतीकरण नहीं करती है।
उसके जो कारण बतातें है कॉमन जो रीज़ंस होते हैं। वो ये होते हैं कि ये कॉन्ट्रैक्ट लेबर्स है। सेकंड कारण होता है। कि सेंक्शन पोस्ट नहीं है। तीसरा होता है कि वैकेंसी नहीं है जिनके अगेंस्ट इन कॉन्ट्रैक्ट एंप्लाइजज़ को रेगुलर किया जा सके। और इसके अलावा एक और कारण होता है
बहुत कॉमन जो सरकार या डिपार्टमेंट द्वारा दिया जाता है कि फंड्स नहीं है हमारे पास। तो सरकार जनरली ऐसे मामलों में पल्ला झाड़ती है कह के कि हमारे पास फंड्स नहीं है इनको रेगुलर करने के लिए। सुप्रीम कोर्ट का जो रिसेंट जजमेंट इसका टाइटल है धर्म सिंह वर्सेस स्टेट ऑफ यूपी और बेसिकली इस जजमेंट के अंदर फंड्स के बारे में भी बात की गई है।
स्टेट को स्पेशल डायरेक्शन भी दिए गए हैं। साथ में स्टेट से कंप्लायंस रिपोर्ट भी मांगी है। तो सुप्रीम कोर्ट की क्या ऑब्जरवेशन है? पूरा जजमेंट क्या है? बात करेंगे इस वीडियो में। एक बार फिर आपसे निवेदन है अगर आप लोग हमारे चैनल पे नए हैं तो प्लीज सब्सक्राइब चैनल एंड प्रेस द बेल आइकॉन।
Suprimcort New Order में नियमतीकरण के नियम
Suprimcort New Order में देखिए दोस्तों, यह जजमेंट का जो पहला पैराग्राफ़ है, उसमें कोर्ट की ऑब्ज़रवेशन क्या है? द कंट्रोवर्सी बिफ़ोर अस इज़ नॉट अबाउट रिवॉर्डिंग इर्रेगुलर एंप्लॉयमेंट। इट इज़ अबाउट वेदर इयर्स ऑफ़ एडॉक एंगेजमेंट डिफेंडेड बाय शिफ्टिंग एक्सक्यूज़ एंड प्लेज़ ऑफ़ फाइनेंसियल स्ट्रेन।
Suprimcort New Order में कैन बी यूज़्ड टू डिनाई द राइट्स ऑफ़ दोज़ हु हैव केप्ट पब्लिक इंस्टीट्यूशन रनिंग। मतलब डिपार्टमेंट जो एक्सक्यूज देता आ रहा है कि हमारे पास फाइनेंसियल कैपेसिटी नहीं है। फाइनेंसियल कंस्ट्रेंट्स है। तो सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है शुरुआत में ही कि फाइनेंसियल कंस्ट्रेंट के नाम क्या कर्मचारियों को उनके बेसिक राइट देने से मना किया जा सकता है?
क्योंकि वो लंबे समय से काम कर रहे हैं। एक ही तरह का काम कर रहे हैं और वो दे आर एंटाइटल्ड फॉर रेगुलाइजेशन। तो कोर्ट ने जजमेंट की शुरुआत में ये क्वेश्चन रेज किया है। देखिए सुप्रीम कोर्ट के फाइनल डायरेक्शंस पे पहुंचने से पहले हम इस केस की एक बार पृष्ठभूमि देख लेते हैं कि ये केस सुप्रीम कोर्ट में आया किस तरह से?
Suprimcort New Order में देखिए इस ऑर्डर को हम देखते हैं तो मालूम चलता है कि इलाहाबाद हाईको डीबी बेंच ने 2017 में ये पिटीशन खारिज की थी। और अगर हम कारण देखते हैं कि हाई कोर्ट ने ये पिटीशन खारिज क्यों की थी? तो उसमें कारण थे बेसिकली पहला कारण था कि जो एंप्लाइजज़ थे ये डेली बेसिस पे थे।
सेकंड कारण ये था यूपी हायर एजुकेशन सर्विस कमीशन में रेगुलर करने का कोई रूल्स ही नहीं है। तीसरा कारण एक और हाई कोर्ट ने दिया है कि कोई भी वैकेंसी अभी एग्जिस्ट नहीं करती है जिनके अगेंस्ट इन कर्मचारियों को रेगुलर किया जा सके। अब अगर पिटीशनर का केस देखें तो हमें मालूम चलता है
कि इसमें पांच छह पिटिशनर्स थे बिटवीन 1989 और 1992 में ये लोग कमीशन के साथ जुड़े थे। जिनमें से कुछ एज ए पीओन जुड़े थे और कुछ एज अ ड्राइवर जुड़े थे। शुरुआत में डेली बेसिस पे थे। अप्रैल 97 से कमीशन ने इनको एक मंथली अमाउंट देना शुरू कर दिया।
Suprimcort New Order में अच्छा इन लोगों की जरूरत कैसे पड़ी? तो आपको बता दें कि कमीशन ने हाई एजुकेशन सर्विस कमीशन एक्ट बनाया 1980 के अंदर जिसके तहत पूरे यूपी स्टेट में टीचर्स की भर्ती की जानी थी। टीचर भर्ती का मतलब है बहुत सारी वैकेंसीज तो बहुत सारी एप्लीकेशनेशंस भी लगेगी।
Suprimcort New Order में अगर इतने बड़े लेवल पे हायरिंग करनी है तो उन एप्लीकेशन के स्कूटनी के लिए और भी काम के लिए इनको सपोर्ट स्टाफ की जरूरत पड़ी। सपोर्ट स्टाफ मतलब जो आपके पीओन हो गए, आपके चौकीदार हो गए, ड्राइवर हो गए। इस तरह के स्टाफ की इनको रिक्वायरमेंट हुई।
तो कमीशन या फिर रिक्वायरमेंट रेज की बिफोर गवर्नमेंट कि हमें 14-15 लोगों की आवश्यकता है। सरकार ने इनको एक आदेश दे दिया कि आप डेली बेस के हिसाब से जो सपोर्ट स्टाफ वो रख सकते हैं। पीियड ड्राइवर चौकीदार या आप डेली बेस हिसाब से रख सकते हैं।
1997 में सरकार ने परमिशन दे दी और इस तरह से जो करंट प्रिटिशनर्स है वो डिपार्टमेंट के साथ काम करने लग गए। इसके बाद 1999 में कमीशन ने एक और लेटर लिखा गवर्नमेंट को कि कुछ पोस्ट आप सेंशन कीजिए जो कि सपोर्ट स्टाफ की पोस्ट है उसे आप सेंशन कीजिए।
लेकिन वो जो प्रपोजल था वह गवर्नमेंट ने सरकार ने डिक्लाइन कर दिया और कारण यह बताया कि ड्यू टू फाइनेंसियल कंस्ट्रेंट्स हम पोस्ट क्रिएट नहीं कर सकते हैं। और गवर्नमेंट की इसी ऑर्डर को सन 2000 में पिटिशर्स ने चैलेंज किया बिफोर हाई कोर्ट 2002 के अंदर हाई कोर्ट ने डायरेक्शन दिए कमीशन को कि वापस फ्रेश रिकमेंडेशन सरकार को भेजी जाए।
Suprimcort New Order में कमीशन ने वापस भेजी लेकिन सरकार ने वापस रिकमेंडेशन को डिक्लाइन कर दिया। अगेन कारण ये बताया कि फाइनेंसियल कांस्टेंट और सेकंड ग्राउंड यह आ गया कि देयर इज़ बैन ऑन क्रिएशन ऑफ़ न्यू पोस्ट। एक नया कारण उन्होंने साथ में जोड़ दिया। तो फाइनली 2009 के अंदर पिटीशन खारिज हो गई। इसके बाद वो डीबी में आए।
डीबी के अंदर भी पिटीशन खारिज हो गई। डीबी में जो पिटीशन खारिज हुई उसमें कारण ये बताया गया कि देयर इज़ नो रूल्स फॉर रेगुलाइजेशन इन कमीशन। सेकंड देयर इज़ नो वेकेंट पोस्ट अवेलेबल जिनके अगेंस्ट इन एंप्लाइजज़ को रेगुलर किया जा सके। तो कोई ऐसी वैकेंसी भी अवेलेबल नहीं है।
Suprimcort New Order में 2018 का नियम
Suprimcort New Order में फाइनली 2018 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो प्रिंसिपल क्वेश्चन था बिफोर हाई कोर्ट वो यह नहीं था कि इनको रेगुलर किया जाए। बेसिकली क्वेश्चन यह होना चाहिए था कि कि स्टेट पोस्ट क्रिएट करने से कैसे मना कर सकता है? जबकि उस पोस्ट पर वह कंटरी वर्कर्स को काम ले रहा है।
काफी लंबे समय से काम ले रहा है और उस डिपार्टमेंट में यह काम पूरे साल रहता है। तो जब वो काम ऑलरेडी सरकार के पास है तो एज अ गुड स्टेट वो पोस्ट क्रिएट करने से मना कैसे कर सकता है? ये प्रिंसिपल क्वेश्चन हाई कोर्ट के सामने होना चाहिए था ना कि यह कि वेदर दे आर एंटाइटल्ड फॉर रेगुलाइजेशन ऑ नॉट।
Suprimcort New Order में क्योंकि यह तो कंफर्म था कि काफी लंबे समय से काम कर रहे हैं। पूरे साल यह काम रहता है। तो अब रेगुलाइज़ेशन का सवाल नहीं है। अब सवाल यह है क्या सरकार पोस्ट क्रिएट करने से मना कर सकती है? जबकि जबकि उस तरह का काम पूरे साल रहता है और सरकार कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स से उस तरह का काम ले रही है।
जजमेंट का लिंक मैंने डिस्क्रिप्शन में दिया है। आप वहां जाके देखिए। जजमेंट में फर्दर सुप्रीम कोर्ट ने बात की है जग्गो वर्सेस यूनियन की साथ में श्रीफल वर्सेस नगर निगम के जजमेंट की भी डिटेल में बात की है। उनके जो पॉइंट्स थे वो पूरे जजमेंट में बताए गए हैं। लास्ट में जो सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जरवेशन है
Suprimcort New Order के इस जजमेंट के अंदर वो इस प्रकार है कि ये जो एंप्लाइजज़ है वो काफी लंबे समय से सरकार के साथ काम कर रहे हैं। एक ही नेचर काम कर रहे हैं। तो गवर्नमेंट को एक्सक्यूज देके उनके जो बेसिक राइट्स है जो बेनिफिट्स जो उनको मिलने चाहिए उसको देने से मना नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को अलव कर दिया।
साथ में स्टेट को डायरेक्शन भी दिए। डायरेक्शन अगर देखें तो डायरेक्शन इस प्रकार है। पहला डायरेक्शन दिया है कि इनकी सर्विस रेगुलर की जाए। साथ में सुपर न्यूमेनरी पोस्ट भी क्रिएट की जाए। जैसे सरकार बोलती है ना कि सेंक्शन पोस्ट नहीं है। तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कोई बात नहीं है।
Suprimcort New Order पास होना
Suprimcort New Order में आप सुपर न्यूममेरी पोस्ट क्रिएट कीजिए। एक पैरेलल पोस्ट क्रिएट कीजिए। तो ये बड़ा इंपॉर्टेंट डायरेक्शन दिया है। क्योंकि जो प्रीवियस जजमेंट थे उसमें सिर्फ रेगुलाइज़ेशन डायरेक्शन दिया गया था। लेकिन इसमें स्पेसिफिकली कोर्ट ने कह दिया कि आप पोस्ट क्रिएट कीजिए।
तो जो अरियर्स वो भी दिए जाए। यह भी डायरेक्शन दी कि अगर किसी एंप्लई की डेथ हो चुकी है या फिर रिटायर हो चुका है तो उन्हें भी बेनिफिट मिलने चाहिए और साथ में जो लास्ट डायरेक्शन दिया सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट को साफ-साफ कहा है कि इसकी कंप्लायंस रिपोर्ट आप 4 महीने में सबमिट करें।
तो दोस्तों ये जजमेंट इंपॉर्टेंट इसलिए है क्योंकि यहां पे सुप्रीम कोर्ट ने क्लियरली कह दिया कि अगर आप कहते हैं कि हमारे पास वेकेंट पोस्ट नहीं है या सेंक्शन पोस्ट नहीं है तो आप फिर सुपरन्यूमर पोस्ट क्रिएट कीजिए।
Suprimcort New Order में फंड का भी आप हवाला दे नहीं सकते कि हमारे पास फंड्स नहीं है। यह भी आप एक्सक्यूज नहीं दे सकते। इवन इस मुकदमे में तो यह भी था कि जिस डिपार्टमेंट में वह काम कर रहे हैं वहां पे रेगुलाइजेशन के कोई रूल्स ही नहीं थे।
लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पारित किया है। तो उम्मीद करता हूं जानकारी पसंद आई होगी। जितना हो सके इस लेख को लाइक शेयर कीजिए। अगर आप लोग हमारे चैनल पे नए हैं तो प्लीज सब्सक्राइब चैनल प्रेस द बेल आइकॉन। आपको अगर पीडीएफ चाहिए इस जजमेंट की तो आप हमें कमेन्ट्स कर सकतें हैं।
दोस्तों मेरी Suprimcort New Order की जानकारी में अपनी राय और प्रतिक्रिया अवश्य करें। जिससे मैं आयी हुयी कमियों में हम सुधार कर सकें।








